प्रत्यंगिरा देवी: महाशक्तिशाली रक्षक और सुरक्षा कवच प्रदान करने वाली देवी

खासतौर पर देवी नारसिंही, क्लेशों से जूझ रहे साधकों, तांत्रिक बाधाओं और राहु-केतु जैसे ग्रहदोषों से पीड़ित लोगों के लिए रक्षा कवच मानी जाती हैं। एक ऐसा रक्षा कवच है, जिसे कोई भी नकारात्मक ऊर्जा तोड़ नहीं सकती।

 बुरी और नकारात्मक शक्तियों का नाश करने वाली, काले जादू, काले तंत्र-मंत्र से रक्षा करने वाली महा-शक्ति का नाम है प्रत्यंगिरा देवी। शक्ति और ऊर्जा की इस देवी को समस्त शक्तिशाली दैविक शक्तियों में से एक माना जाता है। इनकी पूजा आपके अंदर के डर को खत्म करती है और साथ ही मन में एक अनूठी शक्ति को जन्म देती है।

कौन हैं प्रत्यंगिरा देवी?

माता पार्वती का एक उग्र अवतार है प्रत्यंगिरा देवी। इनका मुख सिंह का और धर नारी का है। उनके स्वरूप में शिव और शक्ति का उग्र रूप नज़र आता है। नकारात्मक शक्तियों से रक्षा करने वाली इस देवी की पूजा आमतौर पर गुप्त रूप से की जाती है।

देवी प्रत्यंगिरा को अन्य नामों से भी जाना जाता है जिनमें शामिल हैं: नारसिंही, अथर्वणा भद्रकाली, गुह्य काली, सिद्धिलक्ष्मी आदि। देवी नारसिंही, खासतौर पर क्लेशों से जूझ रहे साधकों, तांत्रिक बाधाओं और राहु-केतु जैसे ग्रहदोषों से पीड़ित लोगों के लिए रक्षा कवच मानी जाती हैं। एक ऐसा रक्षा कवच है, जिसे कोई भी नकारात्मक ऊर्जा तोड़ नहीं सकती।

मां पार्वती ने क्यों लिया प्रत्यंगिरा का अवतार?

शिव पुराण के अनुसार, हिरण्यकश्यप का वध करने के बाद जब भगवान नरसिंह का क्रोध कम नहीं हो रहा था, तब भगवान शिव ने शरभ का अवतार लिया ताकि उनका क्रोध शांत हो सके। शिव के इस अवतार में दो गरुड़ पंख, शेर के पंजे, सिंह मुख, जटाएं और चंद्रमा शामिल था। यह अवतार इतना विशालकाय था कि इसने भगवान नरसिंह को अपने पंजों में जकड़ लिया था ओर चोंच मारकर चोटिल करना शुरू कर चुका था। इसके बाद भगवान विष्णु के नरसिंह अवतार को और क्रोध आ गया और उनका रूप और भी उग्र हो गया। यह उग्र अवतार दो पक्षी के मुख वाला था। इसके बाद शरभ तथा गंडभेरुंड अवतार में युद्ध प्रारंभ हो गया जो 18 दिनों तक चलता रहा। इस युद्ध का कोई अंत नज़र नहीं आ रहा था, तीनों लोक में त्राहिमान था। किसी अन्य देवता में इसे रोकने का साहस नहीं था।

ऐसे में मां पार्वती ने प्रत्यंगिरा अवतार लिया। उनका अवतार इतना उग्र और शक्तिशाली था कि उनकी एक चिंघार से शरभ और गंडभेरुंड दोनों में डर समा गया। मां की एक चिंघार से दोनों ने युद्ध रोक दिया और अपने असली अवतार में वापस आ गए। प्रत्यंगिरा देवी का वर्णन मार्कंडेय पुराण, देवी माहात्म्य, रुद्रयमल तंत्र और अथर्ववेद में मिलता है।

प्रत्यंगिरा देवी की पूजा का आध्यात्मिक महत्व

  • अहंकार का सर्वनाश और आत्मबल/आत्मशक्ति का जन्म
  • डर, रुकावट और पूर्व जन्मों के पापों से मुक्ति
  • पूर्वजों के दोष यानी पितृ दोष से छुटकारा
  • आत्मा का परिवर्तन
  • साहस की प्राप्ति

प्रत्यंगिरा देवी के पूजा के लाभ

  • काले जादू से रक्षा: तांत्रिक क्रियाओं, नज़र दोष, नकारात्मक ऊर्जा के प्रभाव और मन में चल रहे उथल-पुथल से मिलेगी मुक्ति
  • गुप्त शत्रुओं से बचाव: जलन रखने वाले, बदनाम करने वालों, बुरा चाहने वालों और नज़र न आने वाले दुश्मनों से मिलेगी सुरक्षा
  • शारीरिक और मानसिक रोगों से राहत: कई आम बीमारियों के साथ ऐसी बीमारियों से राहत जिनका कोई विशेष कारण नहीं होता
  • राहु-केतु दोष निवारण: प्रत्यंगिरा देवी की पूजा से शनि, मंगल, राहु और केतु की प्रतिकूल स्थितियां होंगी शांत
  • घर में शांति और समृद्धि: पारिवारिक कलह और मानसिक अस्थिरता के बाहर निकलने का मिलेगा मार्ग
  • व्यवसायिक सफलता और न्याय: मुकदमेबाज़ी और आर्थिक बाधाओं से मिलेगा छुटकारा

प्रत्यंगिरा देवी की पूजा का ज्योतिषीय महत्त्व

  • राहु-केतु दोष से मिलेगी मुक्ति
  • अमावस्या और चतुर्दशी को की गई पूजा होगी अधिक फलदायक
  • राहुकाल में किया गया हवन विशेषकर होगा प्रभावशाली

प्रत्यंगिरा देवी हवन

यह कोई सामान्य पूजा नहीं होती। यह एक शक्तिशाली तांत्रिक यज्ञ होता है जो प्रशिक्षित पंडितों और तांत्रिकों द्वारा किया जाता है। माना जा सकता है कि इस हवन के पश्चात भक्त के चारों तरफ एक अनदेखा सुरक्षा कवच बन जाता है, जो भक्त की, हर बुरी नज़र और कष्टों से रक्षा करता है।

प्रत्यंगिरा देवी हवन को कब करें?

  • अमावस्या के दिन
  • राहुकाल के वक्त
  • शनिवार की अमावस्या के दिन

हवन के बारे में पाएं अधिक जानकारी: https://astropuja.com/pratyangira-homam.html